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ज्ञानविज्ञान

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                       वास्तव में ज्ञान क्या है ? विज्ञान क्या है ? यह एक आज आधुनिक समय में चर्चा का एक उत्कृष्ट विषय है । आज के विज्ञान और हमारे वैदिक (शास्त्रीय) विज्ञान में बड़ा अन्तर है । आज आधुनिक विज्ञान भी यद्यदि सुख सुविधाएं उपलब्ध कराता है किन्तु साथ ही मौत का सामान (भय) भी उपलब्ध कराता है, इस विज्ञान की विशेषता यह है कि इसका ज्ञान सदैव अपूर्ण रहता है और सदैव कुछ न कुछ नया जानने की इच्छा बनी रहती है, जबकि हमारे शास्त्रीय विज्ञान के अनुसार ‘एक विज्ञान से सर्व विज्ञान’ विदित है । इस विज्ञान के बाद कुछ भी जानना शेष नहीं रहता । सब ज्ञात अज्ञात हो जाता है और अज्ञात ज्ञात हो जाता है । आज हम इसी विषय पर भगवती गीता के आश्रित होकर विचार करेंगे ।              भगवती गीता के अध्याय २/११ से लेकर २/३० तक जीव के स्वरूप का विस्तृत अविनाशी स्वरूप का वर्णन किया गया है । उस जीव के वास्तविक स्वरूप और उसकी प्राप्ति के साधनों का वर्...

प्राणाहार एवं स्वास्थ्य

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             कहते हैं स्वास्थ्य हजार नियामत अर्थात स्वास्थ्य यदि अच्छा तो हजार अत्यन्त प्रिय वस्तुओं में से एक है । इसे हमारे आयुर्विज्ञान की दृष्टि से इस प्रकार कहा गया है― धर्मार्थकाममोक्षाणां मूलमारोग्यमुत्तमम् । रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसे जीवितस्य च ॥             अर्थात धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इन चारों को या इन चारों में एक को भी यदि प्राप्त करना है तो उसका श्रेष्ठ मूल कारण है आरोग्य, इसलिये चाहे भोगों के उद्देश्य से जीवित रहना मात्र हो अथवा मोक्ष की प्राप्ति करनी हो दोनो ही परिस्थितियों में रोगों का नाश कर ही देना चाहिए ।            इस विषय में मैं अपने एक लंबे जीवन का अनुभव साझा कर रहा हूँ । मैं लगभग ३५-४० वर्ष से अपने कुछ पूर्व के और कुछ इस जन्म के कुकृत्यों के कारण किसी न किसी रूप में निरन्तर अस्वस्थ रहता हूँ । मेरा बिना दवा के जीवन धारण करना दुर्लभ हो रहा था । जिसके कारण सन् १९९२ ई. में गंगा के किनारे...