देहाभिमानी की दुर्गति

#देहाभिमानी_की_दुर्गति #आत्मनिरीक्षण त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन । निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥गी.२/४५॥ यहाँ पर विचारणीय तथ्य यह है कि अर्जुन को तीनो गुणों से रहित होने के लिए कहा गया है, क्योंकि प्रकृति ही अपने गुणों के फलस्वरूप क्रियमाण है, जीव नहीं— प्रकृतेः क्रियमाणानि' गुणैः कर्माणि सर्वशः ३/२७ । अब प्रश्न उठता है कि प्रकृति किस प्रकार क्रियमाण होती है ? तो इस पर कहते हैं— कार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते गी.१३/२०, अर्थात कार्य यानी तमोगुण का कार्य में स्थूल शरीर, करण— अर्थात रजोगुण का कार्य पांचों इन्द्रियाँ, कर्तृत्व— अर्थात जिसमें कर्तापन का भाव उदित हो वह सत्त्वगुण का कार्य अन्तःकरण । इस प्रकार शरीर, इन्द्रिय एवं मन इन तीन रूपों में तीनो गुण क्रियमाण होते हैं, इन्हीं तीनों को अष्टधा प्रकृति ७/४ भी कहते हैं । जिसे सुख-दुःख का भोक्ता कहा गया है वह इन तीनो से भिन्न है— पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत...