प्रश्न क्यों न उठाए जायें ?
प्रश्न क्यों न उठाए जायें ?
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उत्तर भारतीय पाठ, ८६,६००½,
दक्षिण भारतीय पाठ ६,५८४
उवाच ७०३३
कुल = १,००,२१७
अब प्रश्न ये है कि जब लेखक एक ही कृष्णद्वैपायन हैं तो दक्षिण भारतीय पाठ में ६,५८४ (छः हजार पांच सौ चौरासी) श्लोक अधिक कैसे हुए ? अथवा उत्तरभारतीय पाठ में इतने श्लोक कम कैसे हुए ? महाभारत में १,०००,००0श्लोक प्रसिद्ध हैं तो २१७ अधिक कैसे हुए ? साथ ही इसके बाद भी बीच बीच में टीकाकार यह भी लिखते हैं कि प्राचीन प्रति में ये पाठ नहीं है । तो प्रश्न यह उठता है कि नवीन पाठ यह आया कहाँ से और कब आया ? अतः इन परिस्थितियों में क्षेपक का मानना लोगों की शौक नहीं मजबूरी है । यह मात्र महाभारत की बात बताया है ।
इसी प्रकार भगवती गीता में एक ही लेखक होने से एक ही पाठ होना चाहिए था किन्तु टीकाकारों ने अपनी विद्वत्ता प्रकट करने के लिए अपने तर्कों से पाठान्तर करके लोगों को समझाने और स्वयं को विद्वान सिद्ध करने में तो सफल हुए लेकिन अनेकों पाठान्तर करके उसमें छेड़खानी करने और मूठ पाठ को विकृत करने का सबूत तो छोड़ ही गये हैं । सबसे अधिक पाठान्तर अभिनवगुप्त की टीका में मिलते हैं । स्वयं खोज करके देखना चाहिए । इसी प्रकार अन्यत्र छेड़छाड़ न हुई हो इसकी क्या गारंटी ? ऐसी स्थिति में क्षेपक होने न होने पर प्रश्न क्यों न उठाए जायें ?
अतः निवेदन है कि अपने आपको अधिक विद्वान और विवेकशील समझने वाले दूसरों को क्षेपक कहने पर औरंगजेब की औलाद बताने वाले स्वयं की विद्वत्ता और खोज पर प्रश्नचिह्न लगाएं कि अब तक उन्होंने शोध क्या किया और किस प्रकार किया जो उनके इतने बोल और संस्कार ही बदल गये जो एक आर्य या हिन्दू का होना चाहिए उसकी झलक भी समाप्त कर दी ।
मैं आपके द्वारा क्षेपक का आरोप लगाने वालों के विरोध को नहीं रोक रहा हूँ आप विरोध करें लेकिन एक सभ्य भारतीय वैदिक संस्कृति का परिचय देते हुए अपने साक्ष्य प्रस्तुत करें कि क्षेपक है तो कैसे ? और यदि क्षेपक नहीं है तो कैसे ?
अन्यथा इस प्रकार के उग्र भाषाई या तो स्वतः मेरी मित्र सूची से बाहर हो जायें या फिर मर्यादित रहें अन्यथा मुझे ही कदम उठाना पड़ेगा । ओ३म् !
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