वर्णमाला (मातृकाओं) की महिमा एवं अनुस्वार प्रयोग

वर्णमाला (मातृकाओं) की महिमा ===================== हमारी सनातन संस्कृति की महिमा तो देखिए कि हमारे यहां वर्णाक्षरों को भी मातृका (देवी) कहते हैं । यह वर्णाक्षर ही वैखरी कहलाते हैं । इन मात्रिकाओं का प्रारंभ अकार से होता है । यह अकार ही संपूर्ण सृष्टि की सृजनात्मक जननी है । इसके आगे से माया प्रपञ्च शुरू हो जाता है और जब माया प्रपञ्च जहां से समाप्त होता है वहाँ ज्ञकार की प्राप्ति होती है अर्थात अकार से उत्पन्न होकर जब प्राणी माया में फंसकर कर अत्यन्त क्षरण को प्राप्त हो जाता है अर्थात क्षकार मातृका ठीक ठीक अपनी गोद में ले लेती है तब आता है त्रकार मातृका की याद । वह त्राहि त्राहि करने लगता है । त्राहि त्राहि करने पर ज्ञकार मात्रा की बड़ी कृपा हो जाती है और वह अपनी अहैतुकी कृपा वशीभूत होकर अपनी गोद में लेकर ज्ञानी बना देती है और वह संसार एवं आत्मा/परमात्मा के यथार्थ तत्त्व को जानकर समस्त मातृकाओं के त्रास से त्राण (रक्षा) प्राप्त कर लेता है । यह हमारे सनातन संस्कृति की महानतम् महिमा है । परन्तु जब तक प्राणी क्षकार को प्राप्त होकर त्रकार की शरण नहीं लेता है सीधे ज्ञकार को ग...