वेदों में प्लुत एवं गुं शब्द का उच्चारण

      शङ्का - प्लुत क्या होता है ? प्लुत का प्रयोग शास्त्रीय है या नहीं ? एवं वेदों में जो ये गुं  होता है वह क्या होता है। जैसे गणानां त्वा गणपति गुं हवामहे।


समाधान : — 

(१) प्लुत : — पूर्णत: शास्त्रसम्मत है, किन्तु प्रारम्भ में।

ओमभ्यादाने ८.२.८७

अधिकारः - पदस्य८.१.१६ , पूर्वत्रासिद्धम्८.२.१ , वाक्यस्य टेः प्लुतः उदात्तः८.२.८२

काशिका - अभ्यादानं प्रारम्भः, तत्र यः ओंशब्दः तस्य प्लुतो भवति। ओ३म् अग्निमीळे पुरोहितम्। अभ्यादाने इत् किम्? ओम् इत्येतदक्षरम् उद्गीथम् उपासीत।

सिद्धान्तकौमुदी (३६०६) - ओंशब्दस्य प्लुतः स्यादारम्भे । ओ३मग्निमीळे पुरोहितम् (ओ३म॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तम्) । अभ्यादाने किम् । ओमित्येकाक्षरम् ।

स्वाध्याय या लेखनादि के आरम्भ में ओम् का प्लुत होता है।  प्लुत को ३ से प्रदर्शित किया जाता है।


               (२) अब गुं  बताते हैं क्या होता है।

एक सूत्र है मोऽनुस्वारः ८.३.२३ जिसके अनुसार पदस्य अन्ते विद्यमानः यः मकारः, तस्य हल्-वर्णे परे संहितायाः विवक्षायाम् अनुस्वारः भवति, पदान्त मकार का संहिता की विवक्षा होने पर हल् वर्ण परे होने पर अनुस्वार हो जाता है। अत: यह पदान्त मकार का अनुस्वार कब होता है यह बताता है। 

जैसे - रामम् वन्दे है तो इसका रामं वन्दे हो जायेगा। 

यह सूत्र मकार के अनुस्वार होने का विधान तो करता है किन्तु इसका उच्चारण कैसा होगा यह नहीं बताता। 

वा पदान्तस्य ८.४.५९ पदान्ते विद्यमानस्य अनुस्वारस्य यय्-वर्णे परे विकल्पेन परसवर्णादेशः भवति  से पदान्त में विद्यमान अनुस्वार के परे यय् वर्ण होने पर परसवर्ण आदेश होता है। यय् के अन्तर्गत सारे वर्गीयव्यञ्जनानि एवं अन्तःस्थ आ जाते हैं। सवर्ण क्या होता है।

तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् १.१.९ सवर्णसंज्ञा ज्ञात कराने वाला सूत्र है। इससे ज्ञात होता है कि आभ्यान्तर प्रयत्न एवं मुख के उच्चारण स्थान समान होने पर सवर्णसंज्ञा होती है। 

इन सूत्रों को ध्यान में रखते हुए अनुस्वार का उच्चारण क्या होगा यह ज्ञात करते हैं। 

अनुस्वार के पश्चात यदि स्वर आते हैं तो पदान्त मकार का अनुस्वार न होने से मकार ही उच्चारण होगा। यदि अनुस्वार के पश्चात क्, ख् आदि वर्गीय व्यञ्जन आते हैं तो अनुस्वार का नासिका अनुस्वारस्य - अनुस्वारस्य उच्चारणस्थानम् नासिका  से उच्चारण स्थान नासिका होने से वर्गीय व्यञ्जनों का पञ्चम् वर्ण आदेश विकल्प से होगा। जैसे  किं गीतम् - किङ्गीतम्, किं गीतम् । कं छात्रम् - कञ्छात्रम्, कं छात्रम् ।

यदि यकार, वकार, लकार आते हैं तो

त्वं यासि - त्वं यासि, त्वय्ँयासि । 

त्वं वदसि - त्वं वदसि, त्वव्ँवदसि । 

त्वं लभसे - त्वं लभसे, त्वल्ँलभसे । 

अब यदि अनुस्वार के पश्चात  'र', शल् 'श', 'ष' , 'स' और 'ह' आये तो वेदों में इसके स्थान पर गुं या ग्वम् बनता है। इसका विशेष चिह्न होता है किन्तु यहां पर टाइप करके कैसे बनेगा पता नहीं। ये पदान्त मकार ही है जो कि हल् परे होने पर अनुस्वार बना एवं उसपर भी 'र', 'श', 'ष', 'स' और 'ह' इसके परे हैं तो ये गुं हो जाता है। गुश्च भी होता है किन्तु ये शाखा की शिक्षा से ज्ञात होगा कहां पर इसका कैसा उच्चारण होना है। 

आशा है कि प्लुत क्या है गुं क्या है, अनुस्वार क्या है यह स्पष्ट हो गया होगा। 'ओम्' का मकार ही अनुस्वार बनता है। यही अनुस्वार 'र', 'श', 'ष', 'स'और 'ह' परे रहते गुं हो जाता है। प्लुत स्वर के उच्चारण की अवधि है।

उच्चारण सुन के सीखा जा सकता है इसके लिए नियम वेद की शाखाओं एवं पाणिनिशिक्षा आदि में हैं यथा —

वर्णानाम् उच्चारणस्थानानि एतादृशानि -

(1) अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः - अ, क्, ख्, ग्, घ्, ङ् , ह् , विसर्गः - एतेषाम् उच्चारणस्थानम् कण्ठः ।

(2) इचुयशानां तालु - इ, च्, छ्, ज्, झ्, ञ्, य् , श् एतेषाम् उच्चारणस्थानम् तालु ।

(3) ऋटुरषाणां मूर्धा - ऋ, ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्, र्, ष् एतेषाम् उच्चारणस्थानम् मूर्धा ।

(4) ऌतुलसानां दन्ताः - ऌ, त्, थ्, द्, ध्, न्, ल्, स्, एतेषाम् उच्चारणस्थानम् दन्ताः ।

(5) उपूपध्मानीयानाम् ओष्ठौ - उ, प्-वर्ग, उपध्मानीय एतेषाम् उच्चारणस्थानम् ओष्ठौ ।

(6) ञमङणनानां नासिका च - ञ्, म्, ङ्, ण्, न् एतेषाम् उच्चारणस्थानम् नासिका अपि अस्ति । 

(7) एदैतोः कण्ठतालु - ए, ऐ एतयोः उच्चारणस्थानम् कण्ठ + तालु ।

(8) ओदौतोः कण्ठोष्ठम् - ओ, औ एतयोः उच्चारणस्थानम् कण्ठ + ओष्ठौ ।

(9) वकारस्य दन्तोष्ठम् - व् वर्णस्य उच्चारणस्थानम् दन्त + ओष्ठौ ।

(10) जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् - जिह्वामूलीयवर्णस्य उच्चारणस्थानम् जिह्वामूलम् ।

(11) नासिका अनुस्वारस्य - अनुस्वारस्य उच्चारणस्थानम् नासिका ।

कुछ अन्य प्रकार से भी अनुस्वार बनता है जैसे  नश्चापदान्तस्य झलि ८.३.२४ अपदान्तमकारस्य अपदान्तनकारस्य च झल्-वर्णे परे संहितायाम् अनुस्वारादेशः भवति ।


               ------- इति आचार्यराजेशबेञ्जवाल:


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