यीशु जयन्ती पर विशेष
यीशु जयन्ती पर विशेष
हम सनातन धर्मावलम्बियों को इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि हम यीशु जयन्ती क्यों मनाए ? ईसाइयों को तो मनाना चाहिए क्योंकि वह उनके क्रान्तिकारी पथ प्रदर्शक थे । परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए ईसाई योजनाबद्ध होकर हम सभी का धर्मान्तरण करा रहे हैं । और हम धर्मान्तरित हो रहे हैं क्यों ? इसका कारण है हमें अपने धर्म के विषय में ठीक-ठीक जानकारी न होना हमारे सनातन धर्म में उत्पन्न हुए रामकृष्ण शंकराचार्य रामानुज इत्यादि के समाज के प्रति त्याग और बलिदान की जानकारी न होना । हम जिसको जीवन में महत्व देते हैं उसी के विषय में जानकारी रखते हैं जिस की जयन्ती मनाते हैं उसी के त्याग और बलिदान का ध्यान रखते हैं परन्तु उसने समाज के अन्य समूहों पर क्या अत्याचार किया इसका कभी भी ध्यान नहीं रखते हैं ।
क्या आप कभी गीता जयन्ती मनाते हैं ? अगर नहीं तो क्यों ? क्या आप जानते हैं कि गीता का हमारे जीवन में क्या महत्व है ? क्या आप शंकराचार्य के विषय में जानते हैं कि उनका इस समाज के लिए क्या योगदान था और है ? यह वही शंकराचार्य हैं जिन्होंने जैन बौद्ध कापालिक पाञ्चारत्र शैव शाक्त पाशुपत इत्यादि वेद विरोधियों का नाश करके सनातन वैदिक धर्म की रक्षा की । उस समय पशु बलि से लेकर मानव बलि तक चरम सीमा में था ऐसे तान्त्रिक असुरों/राक्षसों का नाश करके मानव समाज में शान्ति सौहार्द स्थापित करने वाले शंकराचार्य ही थे । वेदान्ततत्त्व का प्रतिपादन करके मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष मार्ग का उद्धार करने वाले आचार्य शंकर ही थे । परन्तु आप उनका तो कभी उत्सव नहीं मनाते, उनकी तो कभी जयन्ती नहीं मनाते, क्यों ?
रामानुजाचार्य मध्वाचार्य वल्लभाचार्य रामानन्दाचार्य इत्यादि के विषय में सम्भवतः सुना होगा, या न भी सुना हो, उनकी जयन्ती के विषय में कभी सोचा ? उनके उत्सव के विषय में कभी सोचा ? इनका हम सनातन धर्मावलम्बियों पर कितना ऋण है, इस पर भी विचार किया ? अगर नहीं तो क्यों ? ऐसे ही हम बहुत ऐसे महापुरुषों के ऋणी हैं जिनका इतिहास में नाम ही नहीं है अथवा होगा तो हमें इस स्मरण तक नहीं है । हमारे मस्तिष्क में जिसका महत्व होता है हम उसी के विषय में जानते हैं कि उसने कौन से अच्छे कार्य किए, परन्तु यह भूल जाते हैं कि उसने दूसरे समूहों पर कितना अत्याचार भी किया ?
हम यह नहीं कहते कि आप अन्य धर्मों में उत्पन्न महापुरुषों का सम्मान न कीजिए, सम्मान अवश्य करिए परन्तु ठीक वैसे ही सम्मान कीजिए जैसे एक पत्नी अपने पति के सम्बन्ध से उसके भाई उसके माता-पिता उसके इष्ट-मित्र उसके रिश्तेदारों को भी हृदय से सम्मानित करती है, किसी को भी पता नहीं चलता कि वह मेरे से कोई भेद भी करती है, परन्तु जो समर्पण पति के प्रति होता है वह समर्पण अन्य किसी के भी प्रति नहीं होता है यह सभी जानते हैं, ठीक इसी प्रकार सम्मानित सबका कीजिए, सभी धर्मों का सम्मान कीजिए, परन्तु अपने सनातन धर्म एवं वैदिक पथ प्रदर्शकों के प्रति एक पत्नी की तरह से समर्पण कीजिए । जब हम अपने महापुरुषों की जयन्ती मनाएंगे उनका उत्सव करेंगे तो उनके जीवन के विषय में भी जानेंगे कि उनका हमारे ऊपर क्या ऋण है ?
आज जितना भी अत्याचार सनातन धर्म पर हो रहा है सनातन धर्मी जिस प्रकार से अन्य धर्मों और धर्मों के प्रति आकर्षित हैं धर्मान्तरण करा रहे हैं उसका एकमात्र कारण है अपने सनातन धर्म का एवं पथ प्रदर्शकों का ठीक-ठीक ज्ञान न होना । दूसरी बात हम ब्राह्मण आदि तो पहले हैं मनुष्य बाद में यही कारण है कि हम जातिवाद को लेकर आज भी एक दूसरे के ऊपर अत्याचार कर रहे हैं, नीचा दिखा रहे हैं, शोषण कर रहे हैं फलस्वरूप जिसको जहाँ सुविधा मिलेगी उस तरफ तो जाएगा ही, क्योंकि सुविधा लोक में भी चाहिए मरने के बाद किसने क्या देखा ?
अतः हम सभी को सबसे पहले मनुष्य बनना चाहिए अन्य बाद में । सनातन धर्मियों मेरा आपसे आग्रह है, यीशु जयन्ती न मनाकर उक्त महापुरुषों के विषय में जानें, उनकी जयन्ती और उत्सव मनाए । परन्तु मैं उन तथाकथित सनातनी एवं हिन्दू नामधारी गन्दे खून वाले लोगों को कभी मना नहीं करेंगे वह मना सकते हैं क्योंकि उनके अन्दर सनातन धर्मी का खून न होकर किसी विधर्मी का है इसलिए वह मना सकते हैं । अन्त में मैं उन तथाकथित महात्माओं का भी तिरस्कार करता हूँ जो अपने आश्रमों, कुटियों एवं मन्दिरों में ऐसे विधर्मियों को उत्सव मनाने के लिए प्रेरित भी करते हैं और अनुमति भी देते हैं । ओ३म् !
स्वामी शिवाश्रम
टिप्पणियाँ