दुधमुंहे बच्चों का झगड़ा

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥७/७॥ इस श्लोक की व्याख्या प्रश्नात्मक रूप से— यदि सूर्य कहे मेरा प्रकाश सारे संसार को प्रकाशित करता है तो क्या सूर्य और उसका प्रकाश परस्पर भिन्न हैं ? दूसरी बात यदि आपके मन में शंका है कि परतरं कहकर भिन्न दो पदार्थों की तुलना क्यों ? तो क्या आप यह नहीं जानते कि इसी श्लोक में जब यह कह रहे हैं कि मुझसे भिन्न यत्किंत् जगत अर्थात जो कुछ देखने सुनने और समझने में आ रहा है जो जो देखने सुनने समझने में नहीं आ रहा है, वह सब कुछ मैं ही हूं । तो यहां पर कहने का तात्पर्य यह है कि जब मुझसे भिन्न और कुछ है ही नहीं तो मुझसे बढ़कर और कोई श्रेष्ठ कैसे हो सकता है ? क्या परतरं का यह अर्थ समझने का प्रयत्न किया ? इसके अतिरिक्त इससे पहले आपने यह नहीं पढा क्या ? 👉 अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ७/६ जो स्वयं ही स...