जातिवाद और वेद
जातिवाद और वेद
हम लोग आज सबसे अधिक खतरे में किसी कारण को लेकर हैं तो जातिवाद को लेकर । आज अगर हम पौराणिक पद्धति को त्याग कर दें और वैदिक पद्धति को अपनाएं तो समस्याएं हजारों कोश दूर तक नहीं दिखेंगी । इसका हम एक प्रमाण देते हैं ------
वैदिक कालीन राजा जनक, राजा अश्वपति आदि बहुत से राजा हैं । स्वयं महाराज दशरथ भी इनके समय में भी जातीय व्यवस्था मिलती है, तथापि हम विचार करेंगे कि क्या ये जातीय द्वेष उस काल में भी था ?
तो इनके राज्य के लोगों का वर्णन मिलता है कि कोई भी ऐसा नहीं था जो अग्निहोत्री न हो । वर्णन तो बहुत है पर संक्षेप से विचार करते हैं । अगर उस समय शूद्रों को वेद पाठ वर्जित था तो आप "ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड" को उठाकर देखें राजा जनक और अश्वपति सहित कितने ही ऐसे राजा मिलेंगे जिन्होंने यज्ञ में ब्राह्मणों की कमी देखकर अन्य ऐसी जातियों के लोगों को ब्राह्मणों के स्थान पर यज्ञ में बैठाया कि आज के लोग उन्हें दलित कहकर तिरस्कार करेंगें । जितने अवस्थी , दुबे , चौबे , शुक्ल आदि प्रमुख नाम धारण करने वाले हैं वहाँ देखें "ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड" में । वहाँ सटीक प्रमाण मिल जायेगा । समय पढ़े हुए अधिक हो चुका है और पुस्तक भी वर्तमान में मेरे पास नहीं है । किन्तु चावड़ी बाजार नई दिल्ली से मिल जायेगी । संभव है चौखंबा वाराणसी से भी मिल जाये ।
इस विश्लेषक ने जो और जिन तत्थ्यों को उजागर किया है उसके लिए सटीक ये निम्न श्लोक बैठता है -------
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः |
वेद-पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः |।
अर्थात जन्म से सभी शूद्र ही होते हैं मात्र शूद्रवत् नहीं एवं संस्कार होने से द्विज होता है । अब यहाँ ये कदापि नहीं चलेगा कि संस्कार मात्र ब्राह्मण या त्रैवर्णिक का ही होता है । अतः पहला अर्थ शूद्रवत् ही होगा । क्योंकि उपरोक्त पुस्तक ढूंढकर थोड़ा स्वयं परिश्रम करें और देखें कि अगर ऐसी निम्नतर जातियों को यज्ञ में ब्राह्मण बनाकर ब्राह्मण के स्थान पर बैठाया गया था तो पहले तो यज्ञोपवीत आदि संस्कार भी तो हुआ होगा, या कि बिना संस्कार के ही यज्ञ में ब्राह्मण के स्थान पर बैठा दिया होगा ? अब जब संस्कार हुआ तो स्वतः वेदाधिकार है या नहीं ? अगर उस समय आज की तरह जातीय भेदभाव था तो जातियों के वर्णन के बाद भी वहाँ ब्राह्मण स्थानीय स्थान क्यों दिया ? अतः ये सिद्ध हुआ कि वेदपाठी ही हुए और वेदपाठी को विप्र कहा ब्राह्मण नहीं । विप्र अर्थात वह ब्राह्मण जो पठन पाठन और यज्ञ आदि से जीवन यापन करें ।
यहाँ👉 एक बात कठोरता से कहूंगा कि जब इन निम्न जातीय लोगों को ब्राह्मण बनाया गया तो वहीं ये शर्त भी थी कि वे पुनः अपने जन्मना कुल से संबंध किसी भी प्रकार का नहीं रखेंगे । तथा अभक्ष्य भक्षण नहीं करेंगे । आज की तरह पहले लोग ब्राह्मणों की बराबरी करने के ले परिवार और जाति के लिए कभी नहीं लड़ते थे । मात्र ब्राह्मण होना ही उनका मूल उद्देश्य था । और कैसा ब्राह्मण ? गीता के १८वें अध्याय में देखें -----
शमो दम तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च ।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्म कर्म स्वभावजम् ।।
ये नौ गुण ब्राह्मण के स्वाभाविक बताये गये हैं । अतः ब्राह्मण बनने की इच्छा वाले यह बतावें कि वे ब्राह्मण बनने के लिए लड़ रहे हैं या जाति के लिए ? साथ ही ब्राह्मण कुल में जन्म का गौरव प्राप्त करने वाले भी बतायें कि आप में उपरोक्त गुण और वैदिक अनुसरण है भी या कि मात्र विरोध ही करना है ? यहाँ जो तीन चरणों की व्याख्या मिली उससे यह सिद्ध होता है कि "ब्रह्म जानाति स ब्राह्मण: ।" ब्रह्म को जानने वाला ही ब्राह्मण होता है अन्य नहीं ।
श्लोकार्थ स्पष्ट हुआ जन्म से सभी शूद्र संस्कार से सभी द्विज वेद पाठी मात्र विप्र और ब्रह्म को जानने वाला ही ब्राह्मण हुआ ।
अतः जहाँ ऐसी व्यवस्था न दिखे तो ये नव पौराणिकों की कल्पना मात्र है और विधर्मियों की साजिश ।
हम आपको बता दें एक बार नैमिषारण्य में हमने किसी दण्डी संन्यासी से पूछा कि आप जब ब्राह्मणेतर को संन्यास नहीं देते तो शिष्य क्यों बनाते हो ? उसने कहा किसने कहा कि हम ब्राह्मणेतर को शिष्य बनाते हैं ? हम तो मात्र उन्हें शिष्य होने के भ्रम में रखते हैं अन्यथा कोई ब्राह्मण शिष्य तो हमारा बोझा उठाकर चलेगा नहीं और ब्राह्मणेतर को अगर इस भ्रम में नहीं रखेंगे तो बोझा उठायेगा कौन ? मात्र हमको बोझा न ढोना पड़े इसलिये ऐसा करते हैं । एक बार उत्तरप्रदेश में घूमते हुए सूर्यास्त हो गया था । एक मंदिर पर रात रुकने के निमित्त गया । उसने पूछा किस जाति के हो ।हमने कहा यह भी बता देंगे लेकिन पहले मेरा आसन लगाने के लिए बताओं मेरे नित्यकर्म में विलंब हो चुका है । उसने कहा नहीं पहले जाति बताओ फिर हम आपको उसी जाति के दरवाजे पर भेजेंगे । अब ये जो मानसिकता बनी है वह क्या वैदिक है ? बस हम हर जगह यहीं पराजित हैं । हम यहीं धोखा खा रहे हैं ।ये मत कहो कि वेदों में जातियां हैं ही नहीं , इसकी जगह पर यह कहो वेदों में कर्म आधारित जातियां है अर्थात जाति जाति नहीं व्यवस्था थी, अतः किसी प्रकार उनके वेदाध्यन में बाधा नहीं पहुंची । न पहुंचना चाहिए । विड़ंबना ये देखो कि जिन श्री राम जी के राज्य में सभी लोग अकाम भाव को प्राप्त होते हैं । जहाँ चारों वर्णों के लोग एक ही घाट नहाते थे । पनघट एक था । उन्हीं समदर्शी श्रीराम के राज्य में एक शूद्र के तप से ब्राह्मण बालक मर गया और शूद्र को मार डालने से जीवित हो गया ? ये बात गले से कैसे उतरे ? ये श्रीराम उन्हीं दशरथ महाराज के पुत्र हैं जहाँ ऐसा कोई नहीं था जो देव पूजक और अग्निहोत्री न हो । अतः विडंबनाओं का त्यागकरके थोड़ा संगठित होकर सभी लोगों को अपनी मूल जड़ों वैदिक व्यवस्था का मंथन करके उसे ठीक करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
ॐ
टिप्पणियाँ
आलोक वाजपेयी
Khud chutiya to ho hi dushron ko v chutiya bananey ka v shok hey kya.
Abe badey Umar ka bachha😃..Tera baal Pak Gaye par buddhi aaye nahin.
Toh Bhosdiwale chacha aap Kahan sey yeh kahani suni jara batana.sale jaat ko kisiney banaya Nehi wo prakriti ki den hey aur tuney Jo Bhosdiwala Gyan Diya ki ved aur puran main fark hey yehi sey pata chalta hey ki tu toh sala avi bachha hey tujhe kya samjhaaun samajh hi nahin payega tu.
Han agar asli vaidik sanatan dharm ko jaanna hey to yeh Arya samaji, brahmakumari yah Gayatri pariwar jaise chutiyon ke changul sey toh pehley nikalna hoga jo tujh jaise murakh logo ko andha banakey rakhe hain.
Aaj kal to dharm key naam pe byapaar badhgaya hey.phir v kuch Mahatma Aaj v hain jo tujh jaise murakh ko thoda Gyan de sakte hain.
Han vai aur ek baat.gowardhan Muth Puri ka YouTube site dekh bahut kuchh Sikh paayega aur galatphehmi v dur ho jayega.