अथातो कृष्णजिज्ञासा
अथातो कृष्ण जिज्ञासा
यदि मुझसे मेरे अन्तिम अनुभव के बारे में कोई पूछे तो मैं निम्न मंत्र दूंगा ।
ब्रह्मसूत्र का प्रारंभ "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा" से होता है और उस ब्रह्म का लक्षण किया "जन्माद्यस्य यतः" । ठीक श्रीमद्भगवद्गीता को ब्रह्म सूत्र ही समझें । यहाँ का ब्रह्म कृष्ण है । उसे समझना सर्वसामान्य नहीं क्योंकि "अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं" ७/२४ हम उसे साढ़े तीन हाथ के शरीर वाला मानते हैं, जन्मने मरने वाला मानते हैं और मंदिर में पत्थर की मूर्ति मानते हैं । यह भाव बुद्धिहीनों का है "मन्यन्ते मामबुद्धयः" ७/२४ । इनके लिए कहा "माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ।" अर्थत ये असुर हैं जो कृष्ण को एकदेशीय मानते हैं । इतना ही नहीं —
“मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।।९/१२।।”
ये मोहनी माया के द्वारा मोहित व्यर्थ के ज्ञान, कर्म और ज्ञान वाले हैं । इनका चित्त अपने आधीन नहीं है ये विचेतसः हैं अर्थात ये मूर्छित हैं, इनको होश ही नहीं है । अतः ऐसे लोग ही कृष्ण को परिछिन्न और एकदेशीय देखने का दुःसाहस कर सकते हैं ।
प्रश्न उठता है कि कृष्ण जन्मने मरने वाला नहीं है, वह साढ़े तीन हाथ का शरीर नहीं है, मंदिर की मूर्ति नहीं है तो है क्या ? यहीं से जिज्ञासा का प्रारंभ होता है कृष्ण को जानने का "अथातो कृष्ण जिज्ञासा ।" फिर कृष्ण का लक्षण क्या है ? तो उत्तर है "जन्माद्यस्य यतः" अर्थात जिससे सृष्टि, स्थिति, संहार होता है । ये हमारे सूत्र अवश्य अटपटे हैं किन्तु राजसिक तामसिक भाष्य टीकाओं का परित्याग करके एकत्व का प्रतिपान करने वाले भाष्य टीकाओं का श्रवण मनन करने पर इसके सारे रहस्य स्वतः खुल जायेंगे ।
हमसे कोई पहली और अन्तिम बात पूछे कि संसार का एक मात्र कौन सा ऐसा धर्मग्रंथ है जो कर्मठता, विश्वबंधुत्व सिखाती हो साथ ही लौकिक व्यवहार की हर परिस्थिति में जीना सिखाती हो और मोक्ष देने वाली हो, तो मैं बिना बिलंब किये मुठी बांधकर उद्घोष करूंगा कि वह एक मात्र ग्रंथ गीता है । अतः कल्याणपथगामी को गीतामृत का ही नित्य निरंतर पान करना चाहिए ।
इसके लिए सामान्य बातें ध्यान में रखना आवश्यक है--- जैसे
१-👉"वासुदेवः सर्वम्" सर्वम् के अन्तर्गत साधन साध्य और साधक, अर्थात ध्याता ध्यान और ध्येय नाम की त्रिपुटी भी कृष्ण ही है क्योंकि वह सर्वम् है । सर्वम् में कुछ भी छूट गया तो सर्वम् नहीं होगा और कृष्ण खंडित हो जायेगा ।
२-👉वह मुझसे भिन्न नहीं है जो भिन्न है वह कृष्ण नहीं हो सकता ।
३-👉जो लोग संस्कृत का ज्ञान नहीं रखते वे हिन्दी मराठी में स्वामी रामसुखदासजी की साधक संजीवनी का ही अध्ययन करें और सतसंग करें ।(यद्यपि कुछ स्थानों से सहमत नहीं हूं ) ।
४-👉ज्ञानेश्वरी हिन्दी मराठी पढ़े, बल्कि आज के समय में "गूढ़ार्थ ज्ञानेश्वरी" हिन्दी में भी उपलब्ध है जो ज्ञानेश्वरी और एकनाथ जी की गूढ़ार्थ दीपिका दोनों का अद्भुत दिव्य संग्रह है ।
५-👉शांकरभाष्य पढ़ें, शांकरभाष्य को समझने के लिए यद्यपि आनन्दगिरि टीका को प्रमाणित माना जाता है तथापि वह भी उतना रहस्य नहीं खोल पाती जितना शंकरान्दी टीका खोलती है । तथापि इनको किसी के द्वारा पढ़ा जाये तो अति उत्तम । शुद्ध ज्ञानयोग का यहां प्रतिपान है ।
६-👉 ज्ञानेश्वरी (गूढ़ार्थ ज्ञानेश्वरी) और मधुसूदनान्द जी टीका परस्पर ज्ञानोत्तर भक्ति का प्रतिपान करने वाली हैं ।
७-👉 उपरोक्त सभी सत्वगुण का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं ।
८-👉मैं नाम नहीं ले सकता लेकिन भेदवादी सभी भाष्य टीकाएं राजसी और तामसी एवं मूल लक्ष्य से भटकाने वाली हैं अतः इनकी पहचान आपको स्वयं करके बचना होगा ।
ॐ
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