आत्मौपम्येन सर्वत्र

आत्मौपम्येन सर्वत्र
         मित्रों ! मैं ऐसा कुछ लिखना नहीं चाहता था किन्तु कुछ वामपंथी दुराचारी अपनी वासना की ओट भगवान श्रीकृष्ण और गोपिकाओं के उदाहरण से पूर्ति करना चाहते हैं, अतः मैं शिक्षा की दृष्टि से कई घटनाओं में से आपको अपने जीवन की मात्र दो घटनाएं बताऊंगा जिसे गीता के #आत्मौपम्येन_सर्वत्र के रूप में समझा जा सकता है— 
              एक घटना सन् १९९७ ई. की है जब मैं नर्मदा परिक्रमा में था, उस समय मैं गुजरात के अंकलेश्वर में रामघाट नामक तीर्थ में स्नान कर रहा था, एक पंडा आकर बोला— अरे क्या साधू बन गये, विवाह करते घर में रहते पत्नी के साथ ऐश करते । मैने ककहा— हाँ पण्डा जी, मैं भी यही चाहता था किन्तु घर वालों ने बहुत कहने पर भी मेरा विवाह ही नहीं किया तो साधू बन गया, आज भी अगर विवाह हो जाये तो घर चला जाऊँगा, आप अपनी #बेटी का ब्याह मेरे साथ कर दो तो घर चला जाऊँ, वह बिगड़ गया और बोला मैं अपनी बेटी क्यों ब्याह दूँ, तो मैने कहा— जिस किसी लड़की से ब्याह होगा तो वह भी तो किसी न किसी की बेटी ही होगी, किन्तु अन्य को तो मेरी चिन्ता ही नहीं है, आपको मेरी चिन्ता है तो आप ही क्यों न अपनी बेटी मेरे से ब्याह दो ? वह गाली देता हुआ चुपचाप चला गया । 
              दूसरी घटना सन् १९९९ ई. की है, मैं उत्तरप्रदेश के जिला उन्नाव के भगवन्तनगर नामक छोटे से कस्बे से करीब एक या डेढ़ कि.मी. दूर रहता था, जेठ का महीना था धूप थी अत: लगभग १०० फुट दूर पक्का तालाब था, पेड़ों की अच्छी छाया थी, अतः वहाँ चला गया क्योंकि दोपहर का समय था वहाँ कोई था भी नहीं । थोड़ी देर बाद दो हट्टेकट्टे नौजवान चरवाहे आये तो उनमें से एक थोड़ी ही देर बाद लड़कियों को लेकर उन पर मन चलायमान होने के विषय में पूछा, मैने पहले तो उसे बहुत समझाया कि देखो महात्माओं से ऐसी चर्च नहीं करना चाहिए पाप लगेगा, तो वह बोला— महात्मा भी तो मनुष्य होते हैं, आखिर उनका भी तो मन होता है, तब मैने कहा— तो फिर मैं झूठ भी बोल सकता हूँ, इसलिए तुम ताक लो और मैं यहाँ रहता ही हूँ जैसा होऊँगा एक न एक दिन स्वतः सामने आ जाऊँगा तब सब स्वतः प्रमाण हो जायेगा । इतने पर भी वह बोला— नहीं मैं आपके ही मुख से सुनना चाहता हूँ, तब मैने पूछा— क्या तुम्हारे कोई #बहन है ? उसने कहा हाँ, तो मैने कहा कल उसे लेकर आना और फिर मैं तुमहारे ही सामने.......... ॐॐॐ..... । अगर काम हो जाये तो समझ लेना मन चलता है और न हो तो समझ लेना नहीं चलता है । अब उसने आंख दिखाने की चेष्टा की लेकिन मैं पहले ही उस पर हावी हो गया और कहा तुम्हें बुरा क्यों लगा? जिस किसी लड़की पर मेरा मन चलेगा तो वह भी तो किसी की बहन होगी ? और उसके भी भाई को तुम्हारी तरह ही बुरा लगेगा ? मेरे विषय में जानना तो तुम्हें ही है तो फिर तुम अपनी ही बहन लेकर क्यों न आ जाओ ? तुम्हारी परीक्षा भी हो जाये और मैं भी जान लूँ कि स्त्री सुख क्या होता है, फिर उसके साथी ने उसे समझाया कि स्वामी जी पहले ही मना कर रहे थे तुम क्यों पीछे पड़ गये गलती तुम्हारी है । वह कल देख लेंगे की धमकी देकर गालियाँ देता हुआ चला गया, खैर फिर कभी वापस नहीं आया । 
               कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आप कृष्ण हैं और अन्य स्त्रियाँ, लड़कियां गोपिकाएं हैं तो अन्य पुरुष भी कृष्ण है और तुम्हारी माँ, बहन, बेटी उसके लिए गोपिकाएं ही हैं, फिर तुम्हें भी बुरा नहीं लगना चाहिए । याद रहे कि यदि तुम किसी लड़की या स्त्री की इज्जत पर हाथ डालते हो तो निश्चित मानो कि तुम नाजायज संतान हो क्योंकि तुम्हारी ही तरह तुम्हारी माँ भी स्त्री है और उसके ऊपर भी कोई तुमसे पहले ही हाथ डाल चुका है जिससे तुम उत्पन्न हुए हो, यह बात स्वयं ही जाकर माँ से पूछ लेना चाहिए और न बताये तो पैतृक जीन्स जांच करवा लेना चाहिए ।
         इसलिए गीता के आत्मौपम्येन सर्वत्र वाले सूत्र का स्मरण करो और विचार करो तुम्हें क्या अच्छा लगता है ? वही दूसरे को भी अच्छा लगता है, इसीलिये— आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्-
            स्वयं को जो प्रतिकूल लगे, दूसरोँ के साथ वैसा आचरण नहीँ करना चाहिए... ओ३म् !
                             स्वामी शिवाश्रम

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