तुम से तो नरक भी नाक सिकोड़ेगा


तुम से तो नरक भी नाक सिकोड़ेगा

निरुक्त का उद्घोष है कि जो वेद के अर्थ को नहीं जानता वह भारवाही पशु है । अब अर्थ का तात्पर्य शब्दार्थ भी हो सकता है और लक्ष्यार्थ भी । किन्तु यह बात तो स्पष्ट है कि हमारे यहाँ असुर भी वेदों के प्रकाण्ड ज्ञाता थे, राणव, हिरण्यकश्यप आदि असुरों को पढ़ना चाहिए, दुर्योधन तो यहाँ तक कहता है— “जानमि धर्मं न च मे निवृत्तिः..... ” अर्थात धर्म क्या है निर्णय करने में हमारे असुर भी समर्थ थे उससे निवृत्त न हो पाना यह उनकी भोगवासना का परिणाम रहा है ये अलग बात है । 
          अब यदि वेद का अर्थ लक्ष्यार्थ में लिया जाये तो जब तक शब्दार्थ का ज्ञान नहीं होगा तब तक लक्ष्यार्थ कैसे समझ में आयेगा ? अतः उसके लिए पढ़ना आवश्यक है उसके बाद चाहो तो राम बनो या रावण, लेकिन पहले पढ़ों । 
          जिन महापुरुषों का ये उक्त उद्घोष है कि जो वेद-शास्त्र को पढ़ता तो है किन्तु आत्मसात् नहीं करता वह पशु (गधे) की तरह बोझ ढोने वाला है— “भारं वहति गर्दभः” उन्होंने पहले पढ़ा और फिर गंभीरतापूर्वक व्यापक भाव से चिन्तन किया और फिर उक्त उद्घोष किया ताकि वेदों के माहात्म्य को समझकर लोगों की उसके शब्दार्थ के साथ साथ लक्ष्यार्थ में भी प्रवृत्ति हो ताकि लोक और परलोक दोनो पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकें । यही कारण है कि हमारे यहाँ गुरुकुलों की परंपरा अनवरत चलती रही है । जहाँ वेद के अनधिकारी स्त्री पुरुष भी वेदों के ज्ञान से संपन्न होते थे, महाराज दशरथ और राजा अवश्वपति की शासन व्यवस्था देखना चाहिए । 
            किन्तु उन महानुभावों से मेरा प्रश्न यह है कि उक्त महापुरुषों द्वारा कहे गये “भारवाही पशु” संज्ञा उन्होंने वेद-शास्त्र पढ़कर तदनुसार अनुभव करके दिया अथवा तुम्हारी तरह बिना पढ़े ही कह दिया गया ? यदि उन्होंने पढ़कर कहा था तो क्या आपने वेद-शास्त्र पढ़े हैं ? या किसी के लक्ष्य को समझे बिना उनके शब्दों का बोझा ढोते हुए  नेट पर मात्र शास्त्राध्ययन करने वाले महानुभावों को नीचा दिखाने के लिए और स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध करने के लिए कहीं भी गंदगी फैलाने मात्र के लिए सर्प बिच्छू की तरह मात्र डंक मारना मात्र कर रहे हो, मात्र बात काटने के लिए ही ? यदि बिना पढ़े ही शास्त्राध्ययन करने वाले पर कटाक्ष करना ही आपका लक्ष्य है तो इससे आपको असुर कहना तो असुरों का अपमान इसलिए होगा कि वे भी वेद-शास्त्र का अध्ययन करते थे, आप तो मात्र निंदक हो, अतः नरक के अधिकारी हो, और तुम चूंकि जीते जागते बिच्छू सर्प और चूहे आदि की भूमिका का निर्वाह कर रहे हो अतः मरने के बाद वही बनने से तुम्हें कोई नहीं रोक सकता है, तुम से तो नरक भी नाक सिकोड़ कर मुंह मोड़ेगा । तुम जैसों के कारण ही हमारे गुरुकुलों का नाश हुआ है, अंग्रेज और मुसलमान तो व्यर्थ ही बदनाम हैं । ओ३म् !
                           स्वामी शिवाश्रम

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