लोक मर्यादा का ध्यान रखें
माता छिन्नमस्तिका का स्वरूप दिगंबरा है, साथ ही भगवती धूमावती, कालिका इत्याउका स्वरूप भी दिगंबर ही माना जाता है, यहाँ तक भगवती कामाख्या तो साक्षात योनि रूपा हैं और वर्ष में एक बार संभवतः आषाढ़ मास में भगवती रजस्वला भी होती हैं और उस समय मन्दिर चार दिन के लिए योनि को वस्त्रों से ढक कर बन्द कर दिया जाता है, जब मन्दिर खुलता है तब वही रजयुक्त वस्त्रों का प्रसाद रूप में वितरण भी होता है । यह बात स्वयं देवी भागवत में वर्णित है । भगवती कामाख्या भगवान शंकर के लिंग पर ही आकाशस्थ हैं । इन सभी देवियों की उपासना का तन्त्र शास्त्र (वाममार्ग) में अपना एक अलग स्थान है । यह साधना पति-पत्नी मिलकर करते हैं, इनकी दीक्षा में अविवाहित या अकेले स्त्री-पुरुष को नहीं दी जाती है । खैर प्रसंग दिशा विरुद्ध हो गया, हम अपने मुख्य उद्देश्य पर आ जाते हैं—
मैं कहना चाहता था कि ये सभी देवियाँ दिगंबरा होकर भी जब इनकी झांकी प्रस्तुत की जाती है तब इनके गुह्यअंगों कों मुंडों से, हाथों से या आभूषणों से ढक दिया जाता है, जहाँ पर ऐसा नहीं होता है वहाँ पर देवी को दायें या बाएं करके इस प्रकार दिखाया जाता है जिससे योनि और गुदा दोनो ही गुह्यभाग स्पष्ट न हों । उनके ध्यान का भी यही स्वरूप है, इतने मात्र से उनकी दिगंबरा ध्यान और चित्रण की पद्धति पूर्ण हो जाती है ।
मैंने नर्मदा परिक्रमा में एक बार जागरण के अन्तर्गत षोडश महाविद्याओं की झांकी देखा था, उसमें भगवती छिन्नमस्तिका के गुह्य भागों को बहुत छोटे वस्त्रों से ढका गया था और स्तनों पर भी हल्का दुपट्टा दिया गया था । मैने वहाँ के किसी अधिकारी महात्मा से पूछा कि छिन्नमस्तिका तो दिगंबरा हैं फिर ये वस्त्र से अंगावरुद्ध क्यों किया गया है । इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि वो माँ है और माँ की लीला माँ ही जाने किन्तु हम सन्तानों को उचित है कि माँ को दिगंबर रूप में न देखें, साथ ही लोक मर्यादा में हमारी नासमझ सन्तानों पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े अतः गुह्य अंगों को इस प्रकार ढका गया है कि उनका दिगंबर स्वरूप भी प्रत्यक्ष रहे और लोक मर्यादा भी बनी रहे । अतः जो लोग भी भगवती का नग्न चित्र प्रस्तुत करते हैं उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वह उपासना पद्धति आपकी व्यक्तिगत है किन्तु लोक मर्यादित नहीं है । अतः लोक मर्यादित का भी ध्यान अवश्य रखें । स्वयं महादेव भी दिगंबर हैं, किन्तु उनका चित्रण किस प्रकार किया जाता है ? ठीक उसी प्रकार भगवती की भी प्रस्तुति उचित है । ओ३म् !
स्वामी शिवाश्रम
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